तेरे आने का धोखा सा रहा है
दिया सा रात भर जलता रहा है
अजब है रात से आँखों का आलम
यें दरिया रात भर चढ़ता रहा है
सुना है रात भर बरसा है बादल
मगर वो शहर जो पयसा रहा है ?
वो कोई दोस्त था अच्छे दिनों का
जो पिछली रात से याद आ रहा है
किसे ढूंढोगे इन गलियों में 'नासिर' ?
चलो अब घर चलें, दिन जा रहा है
Friday, June 5, 2009
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment