वो के हर अहेद-ए-मोहब्बत से मुकरता जाए
दिल वो ज़ालिम के उसी शख्स पे मरता जाए
मेरे पहलू में वो आया भी तो खुशबु की तरह
मैं उससे जितना समेटूं वो बिखरता जाए
क्यूँ न हम उसको दिल-ओ-जान से चाहें 'तशना'
वो जो एक दुश्मन-ए-जान प्यार भी करता जाए
Friday, June 5, 2009
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