lucknow k nawab ki shayyiri
urdu ghazals, shayari.
Saturday, April 25, 2009
"Daag" ki shayyiri
कया छुपे राज़ इलाही दिल-ए-शैदाई का
अर्सा-ए-हश्र[क़यामत] तो बाज़ार है रुसवाई का
हो गया परतव-ए-रुखसार[गाल]से कुछ और ही रंग
मैंने मुह चूम लिया उस के तमाशाई का
बन गया दाग-ए-जिगर मुहर-ए-क़यामत ऐ 'दाग'
पर अभी रंग वही है शब्-ए-तन्हाई का
No comments:
Post a Comment
‹
›
Home
View web version
No comments:
Post a Comment