lucknow k nawab ki shayyiri
urdu ghazals, shayari.
Tuesday, March 17, 2009
"Daag" ki shayyiri
गैर के साथ दिल में भी देखा
कभी तन्हा नज़र नहीं आता
कोई दिल तेरे एहद[समय] में ज़ालिम
बे-तमन्ना नज़र नहीं आता
दिल का आइना देखने को बना
पर जो चाह नज़र नहीं आता
हमीं ऐ ! 'दाग' कोर-बातिन[अन्तरांत] हैं
वर्ना वो कया नज़र नहीं आता ????
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