आंख को जाम लिखो ज़ुल्फ़ को बरसात लिखो
जिस से नाराज़ हो उस शख्स की हर बात लिखो
जिस से मिलकर भी न मिलने की कसक बाकी है
उसी अन्जान शनासा की मुलाकात लिखो
जिस्म मस्जिद की तरह, आंखे इन नमाज़ों जैसी
जब गुनाहो में इबादत थी वो दिन -रात लिखो
इस्स कहानी का तो अन्जाम वही है जो था
तुम जो चाहो तो मुहब्बत की शुरुआत लिखो
जब भी देखो उसे अपनी नज़र से देखो
कोई कुछ भी कहे तुम अपने खयालात लिखो
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