Saturday, April 4, 2009

sakib laknavi ki shayyiri

हिज्र की शब नाला-ए-दिल वह सदा देने लगे
सुनने वाले रात कटने की दुआ देने लगे
किस नज़र से आप ने देखा दिल-ए-मजरूह को
ज़ख्म जो कुछ भर चले थे फिर हवा देने लगे
जुज़ ज़मीन-ए-कू-ए-जानां कुछ नहीं पेश-ए-निगाह
जिस का दरवाज़ा नज़र आया सदा देने लगे
[except the land of beloved nothing is in sight]
बागबां ने आग दी जब आशियाने को मेरे
जिन पे तकिया था वही पत्ते हवा देने लगे
मुठ्ठियों में ख़ाक ले कर दोस्त आये वक़्त-ए-दफ़न
ज़िंदगी भर की मोहब्बत का सिला देने लगे
आईना हो जाये मेरा इश्क़ उनके हुस्न का
क्या मज़ा हो दर्द अगर खुद ही दवा देने लगे

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