हिज्र की शब नाला-ए-दिल वह सदा देने लगे
सुनने वाले रात कटने की दुआ देने लगे
किस नज़र से आप ने देखा दिल-ए-मजरूह को
ज़ख्म जो कुछ भर चले थे फिर हवा देने लगे
जुज़ ज़मीन-ए-कू-ए-जानां कुछ नहीं पेश-ए-निगाह
जिस का दरवाज़ा नज़र आया सदा देने लगे
[except the land of beloved nothing is in sight]
बागबां ने आग दी जब आशियाने को मेरे
जिन पे तकिया था वही पत्ते हवा देने लगे
मुठ्ठियों में ख़ाक ले कर दोस्त आये वक़्त-ए-दफ़न
ज़िंदगी भर की मोहब्बत का सिला देने लगे
आईना हो जाये मेरा इश्क़ उनके हुस्न का
क्या मज़ा हो दर्द अगर खुद ही दवा देने लगे
Saturday, April 4, 2009
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