कया छुपे राज़ इलाही दिल-ए-शैदाई का
अर्सा-ए-हश्र[क़यामत] तो बाज़ार है रुसवाई का
हो गया परतव-ए-रुखसार[गाल]से कुछ और ही रंग
मैंने मुह चूम लिया उस के तमाशाई का
बन गया दाग-ए-जिगर मुहर-ए-क़यामत ऐ 'दाग'
पर अभी रंग वही है शब्-ए-तन्हाई का
Saturday, April 25, 2009
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