Saturday, April 4, 2009

amir aagha qizalbash ki shayyiri

टूटते रिश्तों का आईना अजब हो जायेगा
एक दिन इंसान बे-नाम-ओ-नसब हो जायेगा
सुबह के हाथों से गिर जायेगा सूरज शाम तक
देखते देखते मस्लूब-ए-शब हो जायेगा
मेरे उस के दरमियाँ हासिल कई कोहसार हैं
मुझ तक आते आते बादल तिश्ना-लैब हो जायेगा
कोई उस जैसा नहीं है शहर की इस भीड़ में
देख लेना वोः भी एक दिन बे-अदब हो जायेगा
उसने पूछा था कभी मेरी उदासी का सबब
अब कोई मत पूछना, वरना गज़ब हो जायेगा

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