ठान ली उसने मुह छिपाने की,बच गयी आबरू ज़माने की
आ गयी रात तेरे जाने की अब नहीं सुबह मुस्कुराने की
गेसु-ए-यार से जो हो के गयी वो हवाएँ नहीं अब आने की
फुटती पौ भी पा सकी न अदा ज़ेरे-लब तेरे मुस्कुराने की
हुस्न आया नहीं शबाब पर और आँख पड़ने लगी ज़माने की
सिमट आई है उसकी आँखों में सारी मस्ती शराबखाने की
कहते हो दस्ताने-आदम क्या ये तो तम्हीद है फ़साने की
दिल भी सीनों में ठहरे ठहरे हैं कुछ खबर भी है उसके आने की
हाय ! शोलानवाइयाँ मेरी जल गयी शाख़ आशियाने की
क्या है आलमै-रोज़गार ए दोस्त इक अदा तेरे आज़माने की
उफ़ यह एहसासे-बेकसी शबे-ग़म बात अलग है तेरे न आने की
क्या किया उसने मुझसे यह मत पूछ मैंने की जिससे बारहा नेकी
जो मेरे दोस्तों ने मुझसे किया एक हकायत है भूल जाने की
उन लबों ने बतायी है तरकीब हर्फ़ को दास्ताँ बनाने की
क्यूँ तेरे हुस्न ने क़सम खायी अब के बिलकुल ना याद आने की
जाते-जाते हर एक लम्हा-ए-उम्र कह गया दास्ताँ ज़माने की
फिर तो दुनिया को भूल बैठा हूँ देर थी कोई याद आने की
चोट खा-खा के गुंचा-ए-गुल को हुई तौफीक(सामर्थ्य) मुस्कुराने की
देख ली तेरी दोस्ती ऐ दोस्त, दोस्ती देख ली ज़माने की
यादे-अय्याम रंजो-ग़म में भी थी अदा तेरे याद आने की
तुने सीखी है ये कहाँ से अदा नाज़ से मुँह छुपा के जाने की
तेरी मोहूम[भ्रमात्मक] दोस्ती के लिए दुश्मनी मोल ली ज़माने की
सई-ए-अम्नो-अमाँ बजा लेकिन कम नही शोरिशें ज़माने की
ऐ फिराक अब मुशाइरा है शुरू देर थी आप ही के आने की
Monday, November 24, 2008
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