सबब खुला ये हमें उन के मुँह छुपाने का
उड़ा ना ले कोई अंदाज़ मुस्कुराने का
ज़फाएँ करते हैं थम थम के इस ख्याल से वो
गया तो फिर ये नहीं मेरे हाथ आने का
खता मुआफ, तुम ऐ ! 'दाग' और ख्वाहिश-ए-वसल
कसूर है ये फकत उन के मुँह लगाने का
Tuesday, March 17, 2009
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