बरसों के इंतज़ार का अंजाम लिख दिया
कागज़ पे शाम काट के फिर शाम लिख दिया
बिखरी पड़ी थी टूट के कलियाँ ज़मीन पर
तरतीब दे के मैंने तेरा नाम लिख दिया
आसन नहीं थी तर्क-ए-मुहबत की दास्तान
जो आँसूओ ने आ कर नाकाम लिख दिया
अल्लाह ! जिंदगी से कहाँ तक निभाऊ मैं
के बेवफा मुहबत में मेरा नाम लिख दिया
तकसीम हो रही थी जब खुदाई की नेमतें
इक इश्क बच गया सो मेरा नाम नाम लिख दिया
किसी की दें है यें शायरी मेरी
इसकी ग़ज़ल पे जिस में मेरा नाम लिख दिया
Saturday, January 17, 2009
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