फुर्सत मिले तो तुम कभी मेरे भी भीतर देखना
पत्थरों पर सिर पटकता इक समंदर देखना
मेरे अंदर छा रही है क्यों अज़ब बेचैनियाँ
ख्वाहिशों से जूझता जिद्दी मुकद्दर देखना !
Saturday, January 17, 2009
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urdu ghazals, shayari.
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