दिल ने वफ़ा के नाम पर कार-ए-जफा नहीं किया
खुद को हलाक कर लिया खुद को फ़िदा नहीं किया
कैसे कहें के तुझको भी हमसे है वास्ता कोई
तुने तो हमसे आज तक कोई गिला नहीं किया
तू भी किसी के बाब में अहेद-शिकन हो गालिबन
मैंने भी एक शख्स का क़र्ज़ अदा नहीं किया
जो भी हो तुमपे मौतारिज़ उसको यही जवाब दो
आप बोहत शरीफ हैं आप ने कया नहीं किया
जिसको भी शेख-ओ-शाह ने हुक्म-ए-खुदा दिया करार
हमने नहीं किया वो काम हाँ बाखुदा नहीं किया
निस्बत-ए-इल्म है बोहत हाकिम-ए-वक़्त को अज़ीज़
उसने तो कार-ए-जेहल भी बे-उलामा नहीं किया
Saturday, January 17, 2009
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