मैं इस उम्मीद पे डूबा की तू बचा लेगा
अब इसके बाद तू मेरा इम्तिहान क्या लेगा
ये एक मेला है वादा किसी से क्या लेगा
ढलेगा दिन तो हरेक अपना रास्ता लेगा
मैं बुझ गया तो हमेशा को बुझ ही जाऊंगा
कोई चराग नही हूँ जो फिर जला लेगा
कलेजा चाहिए ... दुश्मन से दुश्मनी के लिए
जो बे_अमल है वो बदला किसी से क्या लेगा
हज़ार तोड़ के आ जाऊं उससे रिश्ता "वसीम"
मैं जानता हूँ वो जब चाहेगा बुला लेगा
Sunday, May 31, 2009
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment