ये क्या के सब से बयान दिल की हालतें करनी
'फ़रज़' तुझको न आई मुहबतें करनी
ये क़ुर्ब क्या है के तू सामने है और हमें
शुमार अभी से जुदाई की से'आतें करनी
कोई खुदा हो के हो पत्थर ... जिसे भी हम चाहें
तमाम उम्र उसी की इबादतें करनी
सब अपने अपने करीने से मुन्तजिर उस के
किसी को शुक्र किसी को शिकायतें करनी
हम अपने दिल से हैं मजबूर और लोगों को
ज़रा सी बात पे बरपा क़यामतें करनी
मिलें जब उनसे तो मुबहम सी गुफ्तगू करना
फिर अपने आप से सौ-सौ वजातें करनी
ये लोग कैसे मगर दुश्मनी निभातें हैं
हमीं को रास न आई मुहबतें करनी
कभी 'फ़रज़' नये मौसोम में रोया देना
कभी तलाश पुरानी राकाबतें करनी
Sunday, May 31, 2009
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