शख्सियत है कि सिर्फ गाली है
जाने किस शख्स ने उछाली है
शहर दर शहर हाथ उगते हैं
कुछ तो है जो हर एक सवाली[मांगने वाला] है
जो भी हाथ आये टूट कर चाहो
हार के यह रविश[आदत] निकाली है
मीर का दिल कहाँ से लाओगे
ख़ून की बूंद तो बचा ली है
जिस्म में भी उतर के देख लिया
हाथ खाली था अब भी खाली है
रेशा रेशा उधेड़ कर देखो
रोशनी किस जगह से काली है
दिन ने चेहरा खरोंच डाला था
जब तो सूरज पे ख़ाक डाली है
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