Saturday, April 4, 2009

safi lukhnavi ki shayyiri

ग़ज़ल उसने छेड़ी मुझे साज़ देना
ज़रा उम्र-ए-रफ्ता को आवाज़ देना
कफ़स ले उडूं मैं, हवा अब जो सनके
मदद इतनी ए बाल-ए-परवाज़ देना
न खामोश रहना मेरे हम-सफीरो
जब आवाज़ दूँ तुम भी आवाज़ देना
कोई सीख ले दिल की बे-ताबियों को
हर अंजाम में रंग-ए-आगाज़ देना
दलील-ए-गराँ-बारी-ए-संग-ए-गम से
सफी टूट कर दिल को आवाज़ देना

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