एक तवील बोसे में--कैसी प्यास पिन्हां[hidden] है?
तिशनगी की सारी रेत
उंगलियों से गिरती है!
मेरे तेरे पैरों के एक लम्स से
कैसे एक नदी सी बहती है!
क्यों उम्मीद की कश्ती मेरी--तेरी आंखों से
डूब कर उभरती है?
रोज़ अपने साहिल से एक नए समंदर तक
जाके लौट आती है!
मेरे तेरे हाथों की आग से जल उठे हैं
क़ुमक़ुमे से कमरे में!
इस नई दिवाली की आरती उतारेंगे!
आने वाली रातों के
फूल, क़ह्क़हे, आंसू!
Thursday, April 30, 2009
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