Tuesday, March 31, 2009

waseem barelvi ki shayyiri

अँधेरा ज़हन का सिम्त ए सफ़र खोने लगता है
किसी का ध्यान आता है उजाला होने लगता है

किसी ने रख दिए ममता भरे दो हाथ क्या सर पर,
मेरे अंदर कोई बच्चा बिलख कर रोने लगता है

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