दूसरी बातों में हमको हो गया घाटा बोहत
फिक्र-ए-शऊर को दो वक़्त का आता बोहत
आरजू का शोर बपा[बरपा] हिज्र की रातों में था
वस्ल की शब तो हुआ जाता है सन्नाटा बोहत
दिल की बातें दूसरों से मत कहो, कट जाओगे
आजकल इजहार के धंधे में है घाटा बोहत
कायनात और ज़ात में कुछ चल रही है आजकल
जब से अन्दर शोर है बाहर है सन्नाटा बोहत
मौत की आज़ादियाँ भी ऎसी कुछ दिलकश न थीं
फिर भी हमने ज़िंदगी की क़ैद को काटा बोहत
Monday, March 23, 2009
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment