एक नया मोड़ देते हुए फिर फ़साना बदल दीजिये
या तो खुद ही बदल जाइए या ज़माना बदल दीजिये
तर निवाले खुशामद के जो खा रहे हैं वो मत खाइए
आप शाहीन बन जायेंगे आब-ओ-दाना बदल दीजिये
अहल-ए-हिम्मत ने हर दौर मैं कोह[पहाड़] काटे हैं तकदीर के
हर तरफ रास्ते बंद हैं, ये बहाना बदल दीजिये
तय किया है जो तकदीर ने हर जगह सामने आएगा
कितनी ही हिजरतें कीजिए या ठिकाना बदल दीजिये
हमको पाला था जिस पेड़ ने उसके पत्ते ही दुश्मन हुए
कह रही हैं डालियाँ, आशियाना बदल दीजिये
Tuesday, March 31, 2009
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment