मोहब्बत का यही तोहफा बोहत है
मेरे पहलू में एक शोला बोहत है
अमर कर लूँ अगर में आज इसको
सदी के बीच एक लम्हा बोहत है
समंदर, मौज-ए-दरया सब तुम्हारे
मुझे शबनम का एक कतरा बोहत है
हजारों कारवाँ हैं रास्ते में
जो मंजिल पर है वोह तनहा बोहत है
हवस रखता नहीं में माल-ओ-जार कि
मुझे एक दर्द का सिक्का बोहत है
किताब-ए-इश्क़ जो पढ़ने लगे हैं
तो हर पहलू से दिल तड़पा बोहत है
समझ पाए नहीं हम उस की बातें
वोह है नादाँ मगर गहरा बोहत है
Tuesday, March 31, 2009
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