क्यूँ मुझे बंद कमरे में रौशनी की ख्वाहिश है?
फिर तेरे जुल्म-ओ-सितम की आजमाइश है..
मैं भी ताउल्लुक रखता हूँ, इस सर-जमीं से
न सोच कही और की मेरी पैदाइश है...
गर राम को लगे चोट, दर्द अल्लाह को हो
छोडो इसतिकराह[नफ़रत], यही दोनों की रिहाइश है....
Tuesday, March 31, 2009
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