अपना तन और मन मैं तुझपे वार बैठी हूँ
कुछ साँसे बची थी अब वो भी हार बैठी हूँ,
कुछ बोल बैठी बस यूँ ही परेशानी-ऐ-खातिर
दुनिया की पैनी नज़र को भी तैयार बैठी हूँ,
तू भी अपना ना रहा,जग भी बेगाना हो गया
बिना किसी खता के ही मैं खतावार बैठी हूँ,
हयाते-दहर के बदले सोचा था जन्नत मिलेगी
अपने भी खो दिए अब ऐसी लाचार बैठी हूँ,
कहती है दुनिया जो गया वापस ना आएगा
मैं जिद्दी हूँ मोहब्बत का लिए खुमार बैठी हूँ,
Monday, March 23, 2009
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