कीसी को हमसे हैं चाँद शिकवे
कीसी को बेहद शिकायतें हैं.....
हमारे हिस्से में सिर्फ अपनी साफयिया[safaiyaan]हैं
वाज़ह्तें हैं..........
कीसी का मकरूज़ मैं नहीं पर
मेरे गेर्बान पर हाथ सब के......
कोई मेरी चाहतों का दुश्मन
कीसी को दरकार चाहतें हैं....
मैं दूसरों की ख़ुशी की खातिर....
गुबार बन कर बिखर गयी हूँ......
मगर कीसी ने यह हक न माना.....
की मेरी भी कुछ ज़रूरतें हैं..........
Wednesday, March 18, 2009
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