लिखना उसे होंटों से, पढ़ना लब-ए-लालीना[red lips]
उस शोख को लिख पढ़ के सीखा है ग़ज़ल जीना
सब संग-ए-मलामत के रुख़ एक ही जानिब हैं
ज़द[target] पर हूँ मगर मैं ही, मैं ही हूँ मगर बीना[having eyesight, wise]
पाबस्ता सदाओं की जंजीर सी है आगे
आगे न जा इस हद से थम जा..दिल-ए-गमगीना
तलवार सी चलती है वो काट है साँसों में
किन खूनी बगूलों की ज़द पर है मगर मेरा सीना
कब चढ़ता हुआ सूरज धरती पे उतर आये
कब राह में रूक जाये यह चलता हुआ जीना
Tuesday, March 31, 2009
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