देखना है वो मुझपे मेहरबान कितना है
असलियत कहाँ तक है और गुमान कितना है
कया पनाह देती है और यें ज़मीं मुझको
और अभी मेरे सर पर आसमान कितना है
कुछ खबर नहीं आती किस रविश पे है तूफ़ान
और कटा फटा बाक़ी बादबान[sail] कितना है
तोड़ फोड़ करती हैं रोज़ ख्वाहिशें दिल में
तंग इन मकानों से यें मकान कितना है
कया उठाये फिरता है बार-ए-आशकी[wieght] सर पर
और देखने में वो धान-पान कितना है
हर्फ़-ए-आरजू सुन कर जांचने लगा यानि
इस में बात कितनी है और बयान कितना है
फिर उदास कर देगी सरसरी झलक उसकी
भूल कर यें दिल उसको शादमान कितना है
Sunday, January 18, 2009
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