अगरचा बज्म में दर्द-ए-आशना भी कहता है
कोई ना हो तो मुझे वो बुरा भी कहता है
मेरे खुदा उससे झूठलाऊँ किस बहाने से
वो अजनबी तो मुझे आशना भी कहता है
मैं उसके दोगलेपन से बोहत आजिज़ हूँ
वो मुझसे प्यार को, अपनी खता भी कहता है
हुआ है अपना तारुफ़ एक ऐसे मौसम से
जो आँधियों को खराम-ए-सबा भी कहता है
नवर_दात की कीमत पे जिनको बेच सके
ज़माना ऐसे बुतों को खुदा भी कहता है
'क़तील' तू कभी वाज़ का ऐतबार ना करना
मजाक से वो तुझे पारसा भी कहता है
Saturday, January 17, 2009
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment