बेरुखी तो मेरे सरताज नहीं होती है
पर वो पहले सी नज़र आज नही होती है
रूप मुहताज है बन्दों की नज़र का, लेकिन
बंदगी रूप की मुहताज नहीं होती है
सर पर कांटे भी शोंक से रखते है "गुलाब"
तख्तपोशी तो बिना ताज नही होती है
Saturday, January 17, 2009
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