चर्चा-ए-मुहबत सर-ए-आम हो ना जाये
तू मेरे नाम से बदनाम हो ना जाये
बुरा वक़त फिर जिंदगी में आया है
अपने और गैर की पहचान हो ना जाये
अजनबी बन कर तू इस कदर मिला मुझसे
गम आज मुझ पर मेहरबान हो ना जाये
महफिल से उठा मुझको मगर यें देख लेना
मेरे बाद तेरी महफिल वीरान हो ना जाये
इतना प्यार ना बरसा मुझ पर मेरे कातिल
मेरी जान लेने वाला मेरी जान हो ना जाये
तुझे मानाने की खातिर खुदको मिटा रहा हूँ
मेरी यह आखरी कोशिश भी नाकाम हो ना जाये
उसकी मासूम आँखें मुझको बुला रही हैं
आदी आज जानवर से इंसान हो ना जाये
तू मेरे नाम से बदनाम हो ना जाये
Saturday, January 17, 2009
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