खुद से हम इक नफस हिले भी कहाँ
उसको धोंधें तो वो मिले भी कहाँ
खेमा-खेमा गुजार ले यें शब्
सुबह-दम यें काफिले भी कहाँ
अब तामुल ना कर दिल-ए-खुद्काम
रूठ ले फिर यें सिलसिले भी कहाँ
आओ आपस में कुछ गिले कर लें
वर्ना हो सीने की इन खाराशों पर
फिर तानाफुस के यें सिले भी कहाँ
Saturday, January 17, 2009
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