Thursday, January 8, 2009

दर्द-ए-दील तो रुकने का अब नाम नहीं लेता है
सबर-ए-दील भी मेरा अब कम नहीं लेता है
जब से बख्शे है मेरी आँखों को आंसू तुने
तब से दीवाना भी आराम नहीं लेता है
इतना संगदिल है की बर्बाद वो करके मुझे
अपने सर कोई इल्जाम नहीं लेता है
ये इनयात भी नहीं कम मेरे हरजाई की
ज़ख्म देता है मगर दम नहीं लेता है
जो की रुसवाई से डरता है बहुत वो "इशरत"
वो मेरा नाम सरेआम नहीं लेता है

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