Sunday, December 21, 2008
zafar ki shayyiri
आशना[दोस्त] हो तो आशना समझे हो जो नाआशना, तो कया समझे ? हम इसी को भला समझते है आपको जो कोई बुरा समझे वसल है, तू जो समझे, उसे वसल तू जुदा है, अगर जुदा समझे जो ज़हर देवे अपने हाथ से तू तेरा बीमारे-गम दावा समझे हो वो बेगाना एक आलम से जिसको अपना वो दिलरुबा समझे ऐ ! "ज़फर" वो कभी ना हो गुमराह जो मुहबत को रहनुमा समझे
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