वो ग़ज़ल वालों का उस्लूब[शैली] समझते होंगे
चाँद कह्ते हैं किसे खूब समझते होंगे
इतनी मिलती है मेरी गज़लों से सूरत तेरी
लोग तुझ को मेरा महबूब समझते होंगे
मैं समझता था मुहबत की ज़बाँ खुश्बू है
फूल से लोग इसे खूब समझते होंगे
भूल कर अपना यें ज़माना ज़माने वाले
आज के प्यार को मायूब[बुरा] समझते होंगे
Sunday, December 21, 2008
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