आँसूओ कि जहाँ पायमाली रही
ऐसी बस्ती चिरागों से खाली रही
दुश्मनों कि तरह उससे लड़ते रहे
अपनी चाहत भी कितनी निराली रही
जब कभी भी तुम्हारा ख्याल आ गया
फिर कई रोज़ तक बेखयाली रही
लब तरसते रहे इक हँसी के लिये
मेरी कश्ती मुसाफिर से खाली रही
चाँद तारे सभी हम सफ़र थे मगर
जिंदगी रात थी रात काली रही
मेरे सीने पे खुशबू ने सर रख दिया
मेरी बाहों में फूलों की डाली रही
Sunday, December 21, 2008
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