अभी इस तरफ ना निगाह कर मैं ग़ज़ल की पलकें संवर लूँ
मेरा लफ्ज़ लफ्ज़ हो आइना तुझे आईने में उतर लूँ
मैं तमाम दिन का थका हुआ, तू तमाम शब का जगा हुआ
ज़रा ठहर जा इसी मोड़ पर तेरे साथ शाम गुजार लूँ
अगर आसमान की नुमयिशों में मुझे भी इज़्ने-कयाम[ठहराव का आदेश] हो
तो मैं मोतियों की दूकान से तेरी बालियाँ तेरे हार लूँ
कई अजनबी तेरी राह के मेरे पास से यूँ गुज़र गए
जिन्हें देखकर यें तड़प हुई तेरा नाम ले के पुकार लूँ
Sunday, December 21, 2008
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